Saturday, 1 June 2019

पहली मर्तबा

पहली मर्तबा

चाय पर चुस्कियां तो यारों के साथ बेहद लगायी,
पर काोफी पर मुलाक़ात तो पहली मर्तबा तुमने करवाई ।
ये कश्ती झूमते हुई चल रही थी, साहिल की और,
इस्तेक़ाम तो तुम्हारी सामानांतर हवाएं ही लायीं ।

कहते है की ज़िन्दगी से नफरत इंसान से ख़ुदकुशी करवाती है
बखत में तो ये समझता हूँ
कि इश्क़ से न न कोई कातिल है न होगा ।

अगर पलकें है तुम्हारी पिचर पौधे की तरह
तू पुतलियों की तरह
ये भवरा है उनमे जा फसा
सोचता हूँ कि तुम पलकें बंद करोगी
तो यह भवरा तुम्हे रोकेगा
अगर कर भी दोगी तो
में तो उनके आँचल मैं फंस गया था,
पहली मर्तबा । 

दिल इतना बेचैन क्यों?

दिल इतना बेचैन क्यों?

सर पर छत है, जेब में दौलत है
न सर्दी सता रही, और न ही कोई बीमारी
काम बखूबी चल रहा, न किसी से गिला न शिकवा,
तो फिर ये दिल इतना बेचैन क्यों ?

खुदा पर यकीन है, और अपनी मेहनत पर भी
विज्ञान पर यकीन है, और अपनी हसरत पर भी
वल्दा की दुआएं है, और जिस्म की कामनाएं भी
तो फिर ये दिल इतना बेचैन क्यों है ?

यह कुछ जुमले लिखकर सुकून मिलता है,
तो फिर क्या ये समझूँ की शायरी मेरा मुकाम है?
बखत फिर सोचता हूँ कि ये बेचैनी तो आम है
बचपन से ही आदत है दिल को, यूं बेवजह बेचैन रहने की
शायद यह आत्मा की जद्दोजहत है, जिस्म से कुछ कहने की

खैर आत्मा ने चाँद लब्ज़ लिखवा दिए है,
और अब कुछ रक्त और वक़्त बहेंगे, अंकों के दरिया में ।

प स - ज़िन्दगी जीने के लिए लिखना ज़रूरी है । 

बस अब तुम ही


बस अब तुम ही

इन काबिल--फकर नैनो का प्याला ,
पी कर जिन्हे मखमूर हुआ दिलवाला,
तेरी पलकों के परदे ने एक नूर सा दिखाया है,
ना सोने मैं, ना हीरे मैं... ना उस सूरज मैं वो बात है,
इन्ही आँखों का कमाल है.. के हमें इक राह है दिखी,
मंजिल हो जिसकी, बस अब तुम ही

उस अदब के होठों से तेरी आवाज़,
दिल पर वार करने वाले तेरे अलफ़ाज़,
उस वार का एहसास मद्धम हो रहा है,
सीना चीर दो, तब भी वो बात नहीं है,
ज़िन्दगी मैं वो बात नहीं, जो बात तेरी बात मैं है,
मेरी कहानी हो, बस अब तुम ही

Ishq ki

सोचना तुम्हे, लाये सादगी
लिखना तुम्हे, जैसे शायरी
एहसास तुम्हारा बेहद अफीमी,
एहसास तुम्हारा बेहद अफीमी।

यह सांसें न है मेरी न है तेरी,
यह सांसें तो है इश्क़ की।

मेरी कहानी मेरी नहीं,
तैर जवानी, तेरी नहीं
मेहरबानी है यह, उस परवरदिगार की
ये रूहानियत है, न तेरी न उस की
ये रूहानियत तो है इश्क़ की । 

ज़िन्दगी (Life)

ज़िन्दगी बस यादों का समंदर,
समायी है कितनी बूँदें इसके अंदर,
हर बूंद पता है उस गली का,
उस मकाम का, उस क्यास का,
कतरा-दर-कतरा कुछ यूं आपस में मिलता रहा,
और बनता रहा इन ख्वाबों का काफिला

तेरी बूँदें मगर हुजूम में सबसे अलग
मानो रहती हो, समादर की सतह पर
हर ख्वाब जो याद रह जाता है,
वो समंदर के अंदर सा शांत नहीं,
सतह की लहरों सा हंगामी है,
शायद वह तेरी बूंदों से बना है ।

अगर ऐसा नहीं तो क्यूँ हर शाम
जब गुज़रता है, इश्क़ का महताब,
तेरी ही लहरों आतंक सा ढाती है,
कुछ यादें तू छोड़ जाती, कुछ लेकर चली जाती है । 

Kya Likhein ?

क्या लिखें ?
क्या बयान करें ?
वह हसी या वो हवा
जो जुल्फों को तेरे, लहरा देती थी
या वो मशवरा, या वो दवा
जो मुश्किलों में तू पिला दिया करती थी
या फिर वो बेकरारी या खुमारी
जो तेरे आने से आती और जाने से बढ़ती थी ।

क्या लिखें ?
वह अलफ़ाज़ जो तेरे आने पर जज़्बातों से दब जाते थे
या वो सुर और साज
जो बिना कोशिश के ग़ज़ल बन जाते थे
या वह जज़्बा और जूनून,
जो रातों को जागकर काम मुकम्मल करवाता था
क्या लिखें ?
सब लब्ज़ तो आंसुओं से मिट जाते है
क्या कहें ?
सब यादें तो धुंधली सी हो जाती है
क्या समझाएं ?
वो धड़कनें जो चल रही मगर धड़क नहीं,
या ये की ये धड़कनें पहले किसी और के लिए थी

ज़िन्दगी दिलों का सफर है।
जिस्म वसल के लिए बेकरार है,
दिल फिराक होने की तलाश में है,
न तेरी मेरी कहानी वस्ल की है, न फिराक की
न दिल जुड़े है, न जिस्म मिले है,
बस सवाल है यह की
अब क्या लिखें और क्या बताएं ?

Wo bhi waqt tha (वह भी वक़्त था)

वो भी वक़्त था,
जब अरसा गुज़र जाता था तेरी यादों मैं,
जुल्फों का वह खेल या तेरी मेरी आँखों का मेल,
हर लम्हा जेहन में मेरे थम गया था,

वह भी वक़्त था,
रातें बसर जाती थी, तेरे ख्यालों में,
यह गीत सौ सौ दफा सुन लिया करते थे
बखत इश्क़ बयां करने से डरते थे,
तो तुझे इश्क़ करके भी भागते थे

तेरे पास इश्क़ देने के लिए इश्क़ था,
मेरे पास वह इश्क़ लेने का जज़्बा न था,
मौसम गुज़रे, रातें गुज़रे, मुलाक़ातें रुक गयीं
तुम हमें शायद भूल गयी
और हम तुम्हे याद करके भी
याद नहीं कर पाए ।

अब तेरे पास इश्क़ देने के लिए वक़्त नहीं,
या शायद अब तुम्हे हमसे इश्क़ नहीं,
मेरे पास अब वक़्त भी है, हुनर भी है, पर तुम नहीं।

वो भी वक़्त था,
जब लिखने बैठे तो पन्ने काम पड़ जाते थे,
अब बस लिख देते है, लेकिन कुछ बयां नहीं कर पाते।

वह भी वक़्त था,
जब इश्क़ को दुनिया का सबसे ऊँचा दर्ज़ा दिया था,
अब शायद हम आशिक़ उस दर्ज़े के नहीं,
ख़तम नहीं कर सकते वो शुरू जो तुमसे हुआ था,
बस यही इल्तिजा है, वो वक़्त वापिस आ जाए,
या तुम आओ, या हम जाएँ,
या तुम इश्क़ दो, या हम दें,
लेकिन यही गुज़ारिश है,
सात नहीं तोह बस एक जन्म, हम और तुम हम बनकर गुज़ार दें । 

Shunya - Zero - शुन्य

इस मदमस्त शाम के दरमियान,
तलाश है उस शुन्य की,
वही शुन्य जो गुमशुदा है,
कही नक़ाब पहने हुआ है,
बखत यह ढलती शाम उसी शून्य का मुख़्तसर है ।

अचानक से चलती हुई ये सर्द हवा
न महक है, न कोई खुशबू
गुज़रती है यूं मानो तुम यहीं हो,
क्या वजह है की हवा मैं कोई इतर नहीं,
कहाँ गयी फूलों और मिटटी की सुगंध ?

आदत सी है मुझे तुम्हारे इतर की,
जो इस हवा की तरह हमें
अपने होने का एहसास करता था,
तुम्हारे बिना अब हर खुशबू शुन्य है । 

Phir se dikh ja (फिर से दिख जा)

तेरा मिलना, सांस लेना
ज़रा सा दिखना, आह भरना
नजर-ए-गम हुए हो जबसे,
आशिकाना थम गया

फिर से दिख जा, यूं ही मिल जा (X 2)
इश्क़ कामिल ना सही, रोशन ही कर जा ।

जान जा रही, ओ जाने जां
यादें आ रही, लौट के आ,
इस इश्क़ को, राज़ी नहीं तो, रोशन ही कर जा ।

फिर से दिख जा, यूं ही मिल जा (X 2)
इश्क़ कामिल ना सही, रोशन ही कर जा ।

क्यों है यह आस दिल में,
सांसें काम है, हर इक पल में,
जा रही जो, तू ज़ेहन से
बंजर हो गया समां

फिर से दिख जा, यूं ही मिल जा (X 2)
इश्क़ कामिल ना सही, रोशन ही कर जा ।

जन्मो जन्मो का है बंधन,
कैसे होगा रूहों का संगम,
इतना कर दो, हम पर रेहम,

फिर से दिख जा, यूं ही मिल जा (X 2)
इश्क़ कामिल ना सही, रोशन ही कर जा । 

Teri Jhalak (तेरी झलक)

तनहा राहों पर, बस चल रहा हूँ
उन आहटों का मतलब समझ
जो तू दिखी तो, फिर से दिखी तो

बस दवा बन गयी, तेरी झलक
तेरी झलक, तेरी झलक (X 2)

बेचैन सा बस, गुमान है अब
जो तू मिल गयी
आ गया सबर

तेरी झलक, तेरी झलक
बस दवा बन गयी, तेरी झलक । (X 2)

तेरा यूं सवरना और फिर न दिखना
दिखकर न मिलना और फिर से दिखना,
आ गया उस फलक का इशारा समझ

तेरी झलक, तेरी झलक
बस दवा बन गयी, तेरी झलक । (X 2)

अनजान था मैं, गुमनाम अब भी
बस दुआ बन गयी, तेरी मरज

तेरी झलक, तेरी झलक
बस दवा बन गयी, तेरी झलक ।