Saturday, 1 June 2019

पहली मर्तबा

पहली मर्तबा

चाय पर चुस्कियां तो यारों के साथ बेहद लगायी,
पर काोफी पर मुलाक़ात तो पहली मर्तबा तुमने करवाई ।
ये कश्ती झूमते हुई चल रही थी, साहिल की और,
इस्तेक़ाम तो तुम्हारी सामानांतर हवाएं ही लायीं ।

कहते है की ज़िन्दगी से नफरत इंसान से ख़ुदकुशी करवाती है
बखत में तो ये समझता हूँ
कि इश्क़ से न न कोई कातिल है न होगा ।

अगर पलकें है तुम्हारी पिचर पौधे की तरह
तू पुतलियों की तरह
ये भवरा है उनमे जा फसा
सोचता हूँ कि तुम पलकें बंद करोगी
तो यह भवरा तुम्हे रोकेगा
अगर कर भी दोगी तो
में तो उनके आँचल मैं फंस गया था,
पहली मर्तबा । 

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