Saturday, 1 June 2019

दिल इतना बेचैन क्यों?

दिल इतना बेचैन क्यों?

सर पर छत है, जेब में दौलत है
न सर्दी सता रही, और न ही कोई बीमारी
काम बखूबी चल रहा, न किसी से गिला न शिकवा,
तो फिर ये दिल इतना बेचैन क्यों ?

खुदा पर यकीन है, और अपनी मेहनत पर भी
विज्ञान पर यकीन है, और अपनी हसरत पर भी
वल्दा की दुआएं है, और जिस्म की कामनाएं भी
तो फिर ये दिल इतना बेचैन क्यों है ?

यह कुछ जुमले लिखकर सुकून मिलता है,
तो फिर क्या ये समझूँ की शायरी मेरा मुकाम है?
बखत फिर सोचता हूँ कि ये बेचैनी तो आम है
बचपन से ही आदत है दिल को, यूं बेवजह बेचैन रहने की
शायद यह आत्मा की जद्दोजहत है, जिस्म से कुछ कहने की

खैर आत्मा ने चाँद लब्ज़ लिखवा दिए है,
और अब कुछ रक्त और वक़्त बहेंगे, अंकों के दरिया में ।

प स - ज़िन्दगी जीने के लिए लिखना ज़रूरी है । 

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