ज़िन्दगी बस यादों का समंदर,
समायी है कितनी बूँदें इसके अंदर,
हर बूंद पता है उस गली का,
उस मकाम का, उस क्यास का,
कतरा-दर-कतरा कुछ यूं आपस में मिलता रहा,
और बनता रहा इन ख्वाबों का काफिला
तेरी बूँदें मगर हुजूम में सबसे अलग
मानो रहती हो, समादर की सतह पर
हर ख्वाब जो याद रह जाता है,
वो समंदर के अंदर सा शांत नहीं,
सतह की लहरों सा हंगामी है,
शायद वह तेरी बूंदों से बना है ।
अगर ऐसा नहीं तो क्यूँ हर शाम
जब गुज़रता है, इश्क़ का महताब,
तेरी ही लहरों आतंक सा ढाती है,
कुछ यादें तू छोड़ जाती, कुछ लेकर चली जाती है ।
समायी है कितनी बूँदें इसके अंदर,
हर बूंद पता है उस गली का,
उस मकाम का, उस क्यास का,
कतरा-दर-कतरा कुछ यूं आपस में मिलता रहा,
और बनता रहा इन ख्वाबों का काफिला
तेरी बूँदें मगर हुजूम में सबसे अलग
मानो रहती हो, समादर की सतह पर
हर ख्वाब जो याद रह जाता है,
वो समंदर के अंदर सा शांत नहीं,
सतह की लहरों सा हंगामी है,
शायद वह तेरी बूंदों से बना है ।
अगर ऐसा नहीं तो क्यूँ हर शाम
जब गुज़रता है, इश्क़ का महताब,
तेरी ही लहरों आतंक सा ढाती है,
कुछ यादें तू छोड़ जाती, कुछ लेकर चली जाती है ।
No comments:
Post a Comment